Hot Posts

6/recent/ticker-posts

विकास की बाट जोह रहा कोसमदा गांव पक्की सड़क बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव

विशाल रजक तेंदूखेड़ा! ब्लॉक में कई ऐसे गांव है, जहां शासन की योजनाओं और विकास कार्य नजर नहीं आ रहे हैं। इन गांवों के लोग अभी भी बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूल सुविधाओं से वंचित है। इन गांवों की तरफ न तो अधिकारी देख रहे हैं और न ही जनप्रतिनिधि। ग्रामीणों का कहना कि उनकी याद सिर्फ चुनाव के समय पर ही आती है। इन गांवों में से एक कोटखेड़ा ग्राम पंचायत के आश्रित कोसमदा गांव। ये गांव बीच जंगल में पहाड़ी इलाके में बसा है। आबादी तकरीबन 250 बताई गई है। करीब 40 मकान है। ये आदिवासी बाहुल्य गांव है। यहां के लोगों का जीवकों पार्जन का मुख्य जरिया मजदूरी और खेती है। इस गांव के लोग अभी भी सड़क, पानी, बिजली जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। 


आदिवासी परिवार के बच्चों को शिक्षा देने के लिए एक स्कूल है, पर वो भी भगवान भरोसे है। ये गांव तेंदूखेड़ा मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीचों बीच बसा हुआ है, फिर भी विकास न होना कहीं न कहीं अधिकारियों जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा को दर्शा रहा है। कोसमदा गांव में रहने वाले आदिवासी समाज के लोग पक्की सड़क की उम्मीद लगाए बैठे हुए हैं। क्योंकि तारादेही से 7 किलोमीटर दूर कोसमदा गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है। यहां पर रहने वाले लोगों का कहना है कि गांव के लोगों को विकास के नाम पर कुछ भी नहीं मिला है। यहां रहने वाले 200 से 250 लोगों को प्रतिदिन नगर जाने के लिए दलदल, खस्ताहाल सड़क से होकर गुजरना पड़ता है। यदि किसी परिवार में कोई बीमार हो या फिर किसी के यहां पर डिलेवरी होना हो तो इमर्जेंसी वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। कई बार तो लोगों की जान पर बन आती है। गांव तक का 4 किलोमीटर का मार्ग खस्ताहाल और कीचड़, दलदल में तब्दील है। जिसके कारण बड़ी समस्या होती है। बीमारों लोगों को कंधा, चारपाई आदि से मुख्य मार्ग तक ले जाना पड़ता है। ग्रामीण शासन प्रशासन से कई बार मार्ग की मरम्मत और सुधार कार्य सहित पक्का मार्ग बनाने के लिए मांग करते आ रहे हैं, लेकिंन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

 पूरा मार्ग सुनसान, रात में सबसे ज्यादा खतरा

यह गांव घने जंगलों के बीचों बीच बसा हुआ है। यहां पर रहने वाले लोग शाम 6 बजे से 7 बजे तक अपने घर और गांव पहुंच जाते हैं। क्योंकि जंगल से रास्ता होने पर सुनसान रहता है और रात में जंगली जानवरों का भी आना-जाना होता है। मार्ग खराब होने के कारण लोगों को डर सताता है। महिलाओं को जब तारादेही और तेंदूखेड़ा आना होता है तो उन्हें भी बड़ी दिक्क त होती है। क्योंकि इन सुनसान मार्ग और घने जंगलों में अधिकांश असामाजिक लोग भी मिलते रहते हैं।

पांच किमी दूर जाते हैं राशन लेने

आदिवासी समाज के लोगों को राशन लेने के लिए गांव से 5 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत कोटखेड़ा जाना पड़ता है और वहां से राशन लेकर फिर गांव आना होता है। सबसे ज्यादा समस्या बारिश के दिनों में होती है। क्योंकि इस समय मार्ग पूरी तरह से बदहाल हो जाता है। वहीं बारिश में राशन भीगने का डर बना रहता है। अन्य यात्री वाहनों की सुविधा नहीं होने से लोगों को पैदल ही राशन लेने के लिए जाना पड़ता है। अनिल गौड़ बताते हैं कि गांव आखिरी छोर पर बसा हुआ है और पक्की सड़क भी नहीं है। इसलिए बड़ी दिक्कत होती है। गांव विकास कार्यों से कोसो दूर है

 शौचालय तक नहीं बनाए

जहां एक ओर स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है और इसके तहत घर-घर में शौचालय बनाए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कोसमदा गांव में एक भी शौचालय नहीं बनाया गया है। ग्रामीणों ने कहा कि वर्ष 2019-20 में सरपंच, सचिव द्वारा लोगों के घरों पर शौचालय बनाने की कवायद तो की गई पर आधे अधूरे बनाकर छोड़ दिए है। कुछ का निर्माण कागजों में हो गया है। इस वजह से लोग खुले में निस्तार जाने मजबूर है। सरदार गौड़ ने बताया कि गांव में शौचालय नहीं बने हैं, सभी लोग खुले में निस्तार जाते हैं।

पानी के लिए 2 हैंडपंप रोजगार भी नहीं मिलता

रंजन गौड़ ने बताया कि पूरे गांव में पानी के लिए सिर्फ 2 हैंडपंप है। जिससे भी पानी रूक-रूक कर निकलता है और बाकी हैंडपंप एवं पंचायत द्वारा कराया गया वोरबेल बंद पड़ा हुआ है। गर्मियों में पानी का संकट गहरा जाता है। लोग पानी की तलाश में यहां वहां भटकने मजबूर हो जाते हैं। गांव के आसपास कहीं भी नदी, तालाब सहित अन्य कोई जल स्त्रोत उपलब्ध नहीं है। दुर्गेश गौड़ बताते …

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ