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श्री देव जागेश्वर नाथ जी मंदिर परिसर बांदकपुर में लघुरूद्रात्मक रूद्राभिषेक प्रारम्भ

दमोह। श्री देव जागेश्वर नाथ जी मंदिर परिसर बांदकपुर में 31 जुलाई से दिव्य भव्य एकादश दिवसीय लघुरूद्रात्मक रूद्राभिषेक प्रारम्भ हो गया है, सुबह 7 बजे श्री देव जागेश्वर नाथ जी का पंचामृत से स्नान कराया गया, जिसके बाद मंदिर परिसर में स्थित यज्ञशाला में लघु रुद्रात्मक रुद्राभिषेक विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा मंत्रोच्चार के साथ प्रारम्भ हुआ। जिसमें मुख्य यजमान मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधक पंडित राम कृपाल पाठक एवं डाँ.राधिका सिंह रही जिनके द्वारा धूप दीप नैवेद्य के साथ विधिवत भोलेनाथ जी का पूजन किया गया। मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधक पंडित राम कृपाल पाठक ने बताया कि शिवलिंग पर एक बेलपत्र चढ़ाने से तीन जन्मो के पापकर्म नष्ट हो जाते हैं एवं श्रावण सोमवार को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान का फल प्राप्त होता है। उन्होने बताया कि बेलपत्र को तोड़ते समय भगवान शिव का ध्यान करते हुए मन ही मन प्रणाम करना चाहिए चतुर्थी अष्टमी नवमी चतुर्दशी और अमावस्या तिथि पर बेलपत्र न तोड़ें साथ ही तिथियों के संक्रांति काल और सोमवार को भी बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए, बेलपत्र को कभी भी टहनी समेत नहीं तोड़ना चाहिए इसके अलावा इसे चढ़ाते समय तीन पत्तियों की डंठल को तोड़कर ही भगवान शिव को अर्पण करना चाहिए। बेलपत्र एक ऐसा पत्ता है जो कभी भी बासी नहीं होता है भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से प्रयोग में लाए जाने वाले इस पावन पत्र के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि यदि नया बेलपत्र न उपलब्ध हो तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर कई बार पूजा में प्रयोग किया जा सकता है। भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला भाग स्पर्श कराते हुए चढ़ाएं बेलपत्र को हमेशा अनामिका अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पण करने के साथ-साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं ध्यान रहे कि पत्तियां कटी-फटी न हों शिव पुराण अनुसार श्रावण मास में सोमवार को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है शिवलिंग का बिल्वपत्र से पूजन करने पर दरिद्रता दूर होती है और सौभाग्य का उदय होता है बेलपत्र से भगवान शिव ही नहीं उनके अंशावतार बजरंगबली भी प्रसन्न होते हैं शिवपुराण के अनुसार घर में बिल्व वृक्ष लगाने से पूरा कुटुम्ब विभिन्न प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाता है. जिस स्थान पर बिल्व वृक्ष होता है उसे काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र माना गया है ऐसे स्थान पर साधना आराधना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। 

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